ढाई द्वीप जिनायतन
मध्य लोक के असंख्यात द्वीप -समुद्रों में जम्बूद्वीप ,लवण समुद्र ,घातकी खण्ड ,कालोदधि एवं अर्द्ध पुष्कर द्वीप तक की ढाई द्वीप संज्ञा प्रसिद्ध है | पुष्कर नामक तीसरे द्वीप को अंतर एवं बाह्य -दो भागो में विभाजित करने वाला मानुषोत्तर नाम का पर्वत है | यह पर्वत मनुष्य क्षेत्र की सीमा निर्धारण करने वाला होने से अपने नाम को सार्थक करता है | मनुष्य गति के जीव इस पर्वत के भीतरी भाग में ही रहते हैं ,इससे बाहर न उत्पन्न ही होते हैं और न ही जा सकते हैं | इसलिये इस क्षेत्र को मनुष्य लोक भी कहा जाता हैं| यह क्षेत्र कुल ४५ लाख योजन व्यास वाला गोलाकार है । जिसे हमारे जिनायतन में १३४ फ़ीट व्यास वाले गोलाकार क्षेत्र में निर्मित किया जा रहा है ।
ढाई द्वीप (मनुष्य लोक ) की रचना पूरे विश्व में सर्व प्रथम इंदौर की धरातल पर बनने जा रही है । जैन-आगमो में वर्णित रचनाओ के अनुसार ढाई -द्वीप (मनुष्य लोक ) में कुल ३९८ अकृत्यिम चैत्यालय हैं । जिनकी रचना यहाँ लाइट एण्ड साउंड सहित प्रदर्शित करने का सार्थक प्रयास किया जा रहा है । इसके अंतर्गत पंच मेरू पर्वतो पर ८० ,गजदंतो पर २० ,जम्बू -शाल्मलि आदि वृक्षों पर १० ,वक्षार गिरि पर ८०,कुलाचलो पर ३० ,विजयार्द्धो पर १७०,इष्वाकर पर ४ एवं मानुषोत्तर पर्वत पर ४ चैत्यालय निर्मित किये जायेंगे ।
ढाई द्वीप में ५ भरत एवं ५ ऐरावत क्षेत्र हैं । इन सभी क्षेत्रों में एक युग में वर्तमान कालीन २४-२४ तीर्थंकर होते हैं । भूतकाल तथा भविष्य काल की भी यही स्थिति है । इसप्रकार भरत एवं ऐरावत के १० क्षेत्रो में वर्तमान काल की चौबीसी अर्थात २४० तीर्थंकर ,भूतकालीन १० चौबीसी अर्थात २४० तीर्थंकर तथा भविष्यकालीन १० चौबीसी अर्थात २४० तीर्थंकर-इसप्रकार ३० चौबीसी के कुल ७२० तीर्थंकरो की प्रतिमाये विराजमान होंगी ।
भरत एवं ऐरावत क्षेत्रो के अतिरिक्त विदेह क्षेत्रो में सदा काल कम-से-कम २० तीर्थंकर मौजूद रहते हैं । विदेह क्षेत्र की रचना बनाकर वहाँ विद्यमान तीर्थंकरों की २० प्रतिमायें विराजमान की जायेंगी ।
इस प्रकार ढाई द्वीप जिनायतन में ३९८ अकृत्यिम चैत्यालयों की,७२० तीर्थंकरों की तथा २० विद्यमान तीर्थंकरों की-इसप्रकार कुल ११३८ जिन प्रतिमाये विराजमान होंगी ।
-यह सम्पूर्ण जानकारी प.श्री संजीव जी गोधा ,जयपुर एवं श्री मुकेश जी जैन ,इंदौर द्वारा प्राप्त है ।